शॉक थेरेपी (Shock Therapy)- Class 12 Political Science Notes in Hindi
👉 इस लेख में आप जानेंगे –
- शॉक थेरेपी की परिभाषा और कारण
- इसकी प्रक्रिया और विशेषताएँ
- शॉक थेरेपी के प्रभाव (आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक)
- परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
यह टॉपिक Class 12 Political Science Notes in Hindi, NCERT Solutions (Hindi Medium) और Board Exam 2025 Important Questions की तैयारी के लिए अत्यंत उपयोगी है।
शॉक थेरेपी – इसका शाब्दिक अर्थ है आघात पहुँचाकर उपचार करना।
शॉक थेरेपी उस आर्थिक नीति को कहा जाता है जिसे 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद रूस और पूर्वी अमेरिका तथा मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के लिए एक विशेष मॉडल था। जब सोवियत संघ (USSR) टूटकर कई छोटे देशों (जैसे रूस, यूक्रेन, कज़ाकिस्तान आदि) में बंट गया, तब इन नए देशों को अपने देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए एक नई दिशा की ज़रूरत थी। पहले ये सभी देश समाजवादी व्यवस्था अपनाते थे, जहाँ अधिकांश उद्योग-धंधे सरकार के नियंत्रण में थे। लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद इन देशों को पूंजीवादी व्यवस्था (Capitalism) की ओर बढ़ना पड़ा। पूंजीवादी व्यवस्था अपनाने की इस प्रक्रिया को ही "शॉक थेरेपी" कहा गया। शॉक थेरेपी की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा।
शॉक थेरेपी की विशेषताएँ :
शॉक थेरेपी अपनाने के कारण :
1. सोवियत संघ का विघटन :
(i) 1991 में USSR के टूटने से समाजवादी व्यवस्था की साख (credibility) कमज़ोर हुई।
(ii) नए स्वतंत्र देशों ने सोचा कि पूँजीवाद (Capitalism) और उदार लोकतंत्र (Liberal Democracy) ही विकास का सही रास्ता है।
2. आर्थिक संकट :
(i) सोवियत संघ और उसके सहयोगी देशों में भारी आर्थिक संकट था।
(ii) उत्पादन घट रहा था, महंगाई बढ़ रही थी और जनता का सरकार पर भरोसा कम हो रहा था।
(iii) पश्चिमी देशों और IMF–World Bank ने कहा कि तेज़ आर्थिक सुधार ही एकमात्र समाधान है।
3. पश्चिमी देशों का दबाव :
(i) अमेरिका और पश्चिमी यूरोप ने इन देशों को आर्थिक मदद तभी दी जब वे पूँजीवादी सुधार लागू करें।
शर्तें थीं:
- सरकारी नियंत्रण (State Control) खत्म करना
- निजीकरण (Privatisation)
- विदेशी निवेश को बढ़ावा देना
(i) सोवियत संघ टूटने के बाद नई सरकारों ने लोकतंत्र और मुक्त बाजार (Free Market Economy) को अपनाने का निर्णय लिया।
(ii) उनका मानना था कि लोकतंत्र और पूँजीवाद साथ-साथ चलते हैं।
5. तेज़ विकास की उम्मीद :
(i) शॉक थेरेपी को अपनाने वालों को उम्मीद थी कि इससे:
- विदेशी निवेश बढ़ेगा,
- उद्योग-व्यापार तेजी से विकसित होंगे,
- और देश जल्द ही पश्चिमी देशों की तरह सम्पन्न बन जाएंगे।
शॉक थेरेपी के मुख्य बिंदु :
शॉक थेरेपी के परिणाम :-
शॉक थेरेपी की आलोचना
शॉक थेरेपी से सीख :
निष्कर्ष :
परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर :
प्रश्न 1. शॉक थेरेपी क्या है?Ans : शॉक थेरेपी वह नीति थी जिसके अंतर्गत शीत युद्ध के बाद सोवियत संघ और अन्य साम्यवादी देशों ने अचानक समाजवादी व्यवस्था से पूंजीवादी और लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर परिवर्तन किया।
Ans : सोवियत संघ का विघटन और समाजवाद की विफलता।
आर्थिक संकट और उत्पादन में गिरावट।
IMF और विश्व बैंक का दबाव।
लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग।
Ans : सरकारी उद्यमों का निजीकरण।
एकदलीय शासन से बहुदलीय लोकतंत्र की ओर बदलाव।
Ans : उद्योगों में गिरावट, बेरोज़गारी और गरीबी का बढ़ना।
महँगाई और असमानताओं में वृद्धि।
Ans : बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना।
राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और माफिया संस्कृति का उदय।
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