शॉक थेरेपी | Class 12 Political Science Notes

शॉक थेरेपी (Shock Therapy)- Class 12 Political Science Notes in Hindi

👉 इस लेख में आप जानेंगे –

  • शॉक थेरेपी की परिभाषा और कारण
  • इसकी प्रक्रिया और विशेषताएँ
  • शॉक थेरेपी के प्रभाव (आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक)
  • परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

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शॉक थेरेपी Class 12 Political Science Notes in Hindi
समाजवाद से पूंजीवाद

शॉक थेरेपी – इसका शाब्दिक अर्थ है आघात पहुँचाकर उपचार करना।
शॉक थेरेपी उस आर्थिक नीति को कहा जाता है जिसे 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद रूस और पूर्वी अमेरिका तथा मध्य एशिया के देशों में साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण के लिए एक विशेष मॉडल था। जब सोवियत संघ (USSR) टूटकर कई छोटे देशों (जैसे रूस, यूक्रेन, कज़ाकिस्तान आदि) में बंट गया, तब इन नए देशों को अपने देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए एक नई दिशा की ज़रूरत थी। पहले ये सभी देश समाजवादी व्यवस्था अपनाते थे, जहाँ अधिकांश उद्योग-धंधे सरकार के नियंत्रण में थे। लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद इन देशों को पूंजीवादी व्यवस्था (Capitalism) की ओर बढ़ना पड़ा। पूंजीवादी व्यवस्था अपनाने की इस प्रक्रिया को ही "शॉक थेरेपी" कहा गया। शॉक थेरेपी की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा।  


शॉक थेरेपी की विशेषताएँ :

(i) तेज़ बदलाव – धीरे-धीरे सुधार की जगह एकदम से बदलाव।
(ii) निजीकरण (Privatisation) – सरकारी उद्योग और कंपनियाँ निजी हाथों में बेचना।
(iii) उदारीकरण (Liberalisation) – विदेशी निवेश और वैश्विक कंपनियों के लिए बाजार खोलना।
(iv) वैश्वीकरण (Globalisation) – विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ना।
(v) राजनीतिक बदलाव – समाजवादी पार्टी की जगह बहुदलीय लोकतंत्र अपनाना।


शॉक थेरेपी अपनाने के कारण :

1. सोवियत संघ का विघटन :
(i) 1991 में USSR के टूटने से समाजवादी व्यवस्था की साख (credibility) कमज़ोर हुई।
(ii) नए स्वतंत्र देशों ने सोचा कि पूँजीवाद (Capitalism) और उदार लोकतंत्र (Liberal Democracy) ही विकास का सही रास्ता है।

2. आर्थिक संकट :
(i) सोवियत संघ और उसके सहयोगी देशों में भारी आर्थिक संकट था।
(ii) उत्पादन घट रहा था, महंगाई बढ़ रही थी और जनता का सरकार पर भरोसा कम हो रहा था।
(iii) पश्चिमी देशों और IMF–World Bank ने कहा कि तेज़ आर्थिक सुधार ही एकमात्र समाधान है।

3. पश्चिमी देशों का दबाव :
(i) अमेरिका और पश्चिमी यूरोप ने इन देशों को आर्थिक मदद तभी दी जब वे पूँजीवादी सुधार लागू करें।

शर्तें थीं:

  • सरकारी नियंत्रण (State Control) खत्म करना
  • निजीकरण (Privatisation)
  • विदेशी निवेश को बढ़ावा देना
4. लोकतंत्र की ओर झुकाव :
(i) सोवियत संघ टूटने के बाद नई सरकारों ने लोकतंत्र और मुक्त बाजार (Free Market Economy) को अपनाने का निर्णय लिया।
(ii) उनका मानना था कि लोकतंत्र और पूँजीवाद साथ-साथ चलते हैं।

5. तेज़ विकास की उम्मीद :
(i) शॉक थेरेपी को अपनाने वालों को उम्मीद थी कि इससे:

  • विदेशी निवेश बढ़ेगा,
  • उद्योग-व्यापार तेजी से विकसित होंगे,
  • और देश जल्द ही पश्चिमी देशों की तरह सम्पन्न बन जाएंगे।


शॉक थेरेपी के मुख्य बिंदु :

(i) सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में बेचा गया।
(ii) जिन संपत्तियों पर जनता का हक था, वो कुछ अमीर लोगों के पास चली गईं। इससे "ओलिगार्क" नामक अमीरों का वर्ग बना, जिनके पास सारी संपत्ति थी।
(iii) सरकार ने वस्तुओं की कीमतों पर से नियंत्रण हटा दिया।
(iv) बाजार खुल गया, लेकिन इससे गरीब वर्ग को महंगाई का सामना करना पड़ा।
(v) विदेशी निवेश को बढ़ावा मिला।
(vi) देशी कंपनियों को आने की अनुमति दी गई।
(vii) इन देशों को आर्थिक सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं (जैसे IMF, World Bank) की शर्तें माननी पड़ीं। शर्तों में था – सब्सिडी हटाओ, बाजार खोलो, निजीकरण करो।
(viii) इसमें पूंजीवादी पद्धति के आधार पर कृषि करना एवं मुफ्त व्यापार को पूर्ण रूप से अपनाना शामिल था 

शॉक थेरेपी के परिणाम :-

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस और अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों ने अचानक पूँजीवादी आर्थिक सुधार (Capitalist Reforms) अपनाए। इस तेज़ बदलाव को ही शॉक थेरेपी कहा गया। इसके कई गंभीर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिणाम सामने आए।

1. आर्थिक परिणाम :
(i) निजीकरण (Privatisation): सरकारी उद्योगों को निजी हाथों में बेच दिया गया।
(ii) माफिया और ओलिगार्क्स: कुछ धनी लोगों ने सस्ते दामों में सरकारी कंपनियाँ खरीद लीं।
(iii) आर्थिक असमानता: अमीर और गरीब के बीच की खाई बहुत बढ़ गई।
(iv) बेरोजगारी और गरीबी: कई सरकारी कारखाने बंद हो गए, लाखों लोग बेरोजगार हो गए।
(v) महँगाई (Inflation): दाम बेकाबू तरीके से बढ़े जिससे आम जनता परेशान हुई।

2. राजनीतिक परिणाम :
(i) समाजवाद से पूँजीवाद में बदलाव से लोकतंत्र की ओर झुकाव आया।
(ii) कई देशों में नई लोकतांत्रिक सरकारें बनीं।
(iii) लेकिन साथ ही राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार भी बढ़ा।

3. सामाजिक परिणाम :
(i) पहले की सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था (Social Security System) कमजोर हो गई।
(ii) शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं पर असर पड़ा।
(iii) गरीबी और असमानता से समाज में असंतोष फैला।

4. अंतरराष्ट्रीय परिणाम :
(i) पश्चिमी देशों (अमेरिका और यूरोप) का आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ गया।
(ii) रूस और अन्य देशों की विश्व राजनीति में स्थिति कमजोर हो गई।
(iii) नाटो (NATO) और पश्चिमी संगठनों का दबदबा और मजबूत हो गया।


शॉक थेरेपी की आलोचना

(i) सकारात्मक बदलाव बहुत कम हुए – विकास की बजाय आर्थिक संकट और असमानता बढ़ी।
(ii) जनता को नुकसान – बेरोजगारी, गरीबी, महँगाई और असुरक्षा बढ़ी।
(iii) धन-संपत्ति का केंद्रीकरण – कुछ लोगों के हाथ में सारी संपत्ति आ गई।
(iv) सामाजिक असुरक्षा – शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार की गारंटी खत्म हो गई।


शॉक थेरेपी से सीख :

(i) अचानक बड़े बदलाव जनता के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
(ii) किसी भी देश को सुधार की धीरे-धीरे (Gradual) और संतुलित नीति अपनानी चाहिए।
(iii) आर्थिक सुधारों के साथ सामाजिक सुरक्षा भी जरूरी है।


निष्कर्ष :

शॉक थेरेपी एक कठोर और अचानक परिवर्तन था, जिसने समाजवादी व्यवस्था से पूंजीवादी व्यवस्था की ओर ले तो गया, लेकिन इसका प्रभाव सभी देशों में सकारात्मक नहीं रहा। इस नीति का मकसद आर्थिक सुधार था, लेकिन यह सुधार एक झटके में और बिना तैयारी के लागू किया गया, जिससे इसका असर नकारात्मक रहा।



परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर :

प्रश्न 1. शॉक थेरेपी क्या है?
Ans : शॉक थेरेपी वह नीति थी जिसके अंतर्गत शीत युद्ध के बाद सोवियत संघ और अन्य साम्यवादी देशों ने अचानक समाजवादी व्यवस्था से पूंजीवादी और लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर परिवर्तन किया।

प्रश्न 2. शॉक थेरेपी अपनाने के प्रमुख कारण लिखिए।
Ans : सोवियत संघ का विघटन और समाजवाद की विफलता।
आर्थिक संकट और उत्पादन में गिरावट।
IMF और विश्व बैंक का दबाव।
लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग।

प्रश्न 3. शॉक थेरेपी की दो मुख्य विशेषताएँ बताइए।
Ans : सरकारी उद्यमों का निजीकरण।
एकदलीय शासन से बहुदलीय लोकतंत्र की ओर बदलाव।

प्रश्न 4. शॉक थेरेपी के आर्थिक प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
Ans : उद्योगों में गिरावट, बेरोज़गारी और गरीबी का बढ़ना।
महँगाई और असमानताओं में वृद्धि।

प्रश्न 5. शॉक थेरेपी के राजनीतिक प्रभाव क्या रहे?
Ans : बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना।
राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और माफिया संस्कृति का उदय।



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